Sunday, May 16, 2010

अच्छा लगता है . . .


मुझे अब नींद की तलब नहीं.. 
अब तो रातों को जागना अच्छा लगता है !

मुझे नहीं मालूम की वोह मेरी किस्मत है की नहीं..
पर उसे खुदा से मांगना अच्छा लगता है !

अब मुझे खुशियों की तलाश नहीं..
अब तो वीरानियों मँ जीना अच्छा लगता  है !

पानी की अब प्यास कहाँ..
दर्द-ऐ-तन्हाई को पीना अच्छा लगता है !

कोई उनसे कह दो जा कर,
उन्हें नहीं मिलना हमसे तो न सही..
हमे आज भी उनके इंतज़ार मँ युहीं,
पल्के बिछाए रखना अच्छा लगता है !! . . .

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