अब तो रातों को जागना अच्छा लगता है !
मुझे नहीं मालूम की वोह मेरी किस्मत है की नहीं..
मुझे नहीं मालूम की वोह मेरी किस्मत है की नहीं..
पर उसे खुदा से मांगना अच्छा लगता है !
अब मुझे खुशियों की तलाश नहीं..
अब तो वीरानियों मँ जीना अच्छा लगता है !
पानी की अब प्यास कहाँ..
दर्द-ऐ-तन्हाई को पीना अच्छा लगता है !
कोई उनसे कह दो जा कर,
उन्हें नहीं मिलना हमसे तो न सही..
हमे आज भी उनके इंतज़ार मँ युहीं,
पल्के बिछाए रखना अच्छा लगता है !! . . .
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